india mirror today news : Rishi Navik
कोरिया। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कलेक्टर के निर्देशानुसार जिला मुख्यालय सहित नगर क्षेत्रों में रैबीज से बचाव के लिए आवारा कुत्तों का टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है। इस अभियान की जिम्मेदारी नगर पालिका और पशु चिकित्सालय की संयुक्त टीम को सौंपी गई है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है। टीकाकरण कार्य में गंभीर लापरवाही सामने आ रही है, जिससे पूरे अभियान की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े हो गए हैं।
सूत्रों और स्थानीय पशु प्रेमियों के अनुसार टीकाकरण किए गए कुत्तों की पहचान के लिए किसी भी प्रकार की ठोस व्यवस्था नहीं है। न तो कान में टैग लगाया जा रहा है, न ही गले में पहचान पट्टा पहनाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में एक ही कुत्ते को दो-दो, तीन-तीन बार वैक्सीन लगा दी जा रही है, ताकि दिए गए लक्ष्य को कागजों में पूरा दिखाया जा सके। चूंकि अधिकतर आवारा कुत्ते एक जैसे दिखते हैं, इसलिए बिना चिन्हांकन के पहचान करना लगभग असंभव हो जाता है। बैकुण्ठपुर नगर में तो स्थिति और भी चिंताजनक है। पशु विभाग द्वारा चिन्हांकन सामग्री (पट्टा/टैग) की कमी बताकर टीकाकरण कार्य फिलहाल बंद कर दिया गया है। नियमों के अनुसार, वैक्सीन लगाए गए कुत्ते को पहचान के लिए पट्टा पहनाना अनिवार्य है, लेकिन सामग्री उपलब्ध न होने के कारण पूरा अभियान ठप पड़ा है। वहीं शिवपुर-चरचा क्षेत्र में चल रहे टीकाकरण को लेकर गौ रक्षक अनुराग दुबे ने भी गंभीर आरोप लगाए हैं। उनका कहना है कि वहां वैक्सीनेशन तो किया जा रहा है, लेकिन कुत्तों को चिन्हित नहीं किया जा रहा। नतीजतन, एक ही कुत्ते को बार-बार वैक्सीन लग रही है और वास्तविक लाभ के बजाय केवल लक्ष्य पूर्ति की औपचारिकता निभाई जा रही है। इस तरह की लापरवाही से न केवल सरकारी धन की बर्बादी हो रही है, बल्कि रैबीज जैसी घातक बीमारी से बचाव का उद्देश्य भी प्रभावित हो रहा है। अब जरूरत है कि जिला प्रशासन तत्काल संज्ञान लेकर चिन्हांकन व्यवस्था सुनिश्चित करे, ताकि टीकाकरण ईमानदारी और प्रभावी ढंग से हो सके।

